बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - १ :
धातुरूपसिद्धि (लघुसिद्धान्तकौमुदी)
प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
उत्तर -
(क) रूपसिद्धि
१. भू धातु
लट् लकार
एक वचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | भवति | भवतः | भवन्ति |
मध्यम पुरुष | भवसि | भवथः | भवथ |
उत्तम पुरुष | भवामि | भवावः | भवामः |
भवति
भू - 'वर्तमाने लट्' से भू धातु से लट् प्रत्यय
भू + लट् - लट् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + ल् - कर्ता के प्रथम पुरुष एकवचन की विवक्षा में तिप् प्रत्यय
भू + तिप् - 'कर्तरि शप्' से शप का विकरण
भू + शप् + तिप् - तिप् तथा शप् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + अ + ति - सार्वधातुकार्थ धातुकयोः' भू के इगन्त अंग उकार को गुण ओकार करने पर
भो + अ + ति - 'एचोऽयवायावः' से ओ को अव् आदेश होकर।
भवति - यह रूप सिद्ध हुआ।
भवत:
भू - भू धातु लट्लकार प्रथम पुरुष द्विवचन
- भूवादयोः धातवः' सूत्र से भू की धातु संज्ञा
- 'भू सत्तायाम्' सूत्र से भू धातु सत्ता के अर्थ में होने से अकमर्क धातु है।
'लः कर्मणि च भावे चकर्मकेभ्यः' सूत्र से लकारों की प्राप्ति'
भू + ल् - 'वर्तमाने लट्' सूत्र से वर्तमान काल की विवक्षा में धातु से लट् लकार आया।
भू + लट् - लट् के लकारोत्तरवर्ती अकार की 'उपदेशऽजनुनासिक' इत् सूत्र से तथा टकार की 'हलन्त्यम्' सूत्र से इत्संज्ञा होकर तस्यलोपः से लोप हुआ।
भू + तस् - भू धातु लट्लकार प्रथम पुरुष द्विवचन की विवक्षा में 'शेष प्रथमः' सूत्र से प्रत्यय आया।
- तिङ् शित् सार्वधातुकम् सूत्र से तिङ् तसम् की सार्वधातुक संज्ञा।
भू + शप् + तस् - कर्ता अर्थ वाले सार्वधातुक प्रत्यय पर रहते 'कर्तरि शप' सूत्र से शप् प्रत्यय
भू + अ + तस् - शप् के शकार की 'लशभ्वद्धिते' सूत्र से तथा पकार को 'हलन्त्यम्' सूत्र से इत्संज्ञा होकर 'तस्यलोपः' से लोप।
- शप भी शत् होने से सार्वधातुक संज्ञक है।
- यस्मात्प्रत्यय विधिस्तदादि प्रत्येयङ्गगम्' सूत्र से शप् परे रहते भू की अंग संज्ञा हुई।
भू + ओ + अ + तस् - सार्वधातु कार्थधातुकयोः सूत्र से
भवत + (:) - स् को रुत्व विसर्ग होकर
भवतः - यह रूप सिद्ध हुआ।
भवन्ति
भू - वर्तमाने लट् से लट् प्रत्यय
भू + लट् - लट के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + ल् - 'कर्तरि शप' सूत्र से शप का विकरण
भू + शप् + ल् - शप् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + अ + ल् - 'एचोऽयवायावः' से ओ को अव् आदेश
भव् + अ + ल् - कर्त्ता के प्रथम पुरुष बहुवचन की विवक्षा में झि प्रत्यय
भ + झि - 'झोऽन्तः' से झ को अन्त आदेश
भव + अन्ति - 'अतो गुणे' से पररूप आदेश होकर
भवन्ति - यह रूप सिद्ध हुआ।
भवसि
भू - 'वर्तमाने लट्' से लट् प्रत्यय
भू + लट् - लट् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + ल् - 'कर्तरि शप् ́ से शप का विकरण
भू + शप् + ल् - शप् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + अ + ल् - 'सार्वधातु' से भू के इगन्त अंग को गुण होकर
भो + अ + ल् - एचोऽयवायावः' से ओ को अव् आदेश
भव् + अ + ल् - कर्ता के मध्यम पुरुष एकवचन की विवक्षा में सिप् प्रत्यय
भव + अ + सिप - सिप के प् की इत्संज्ञा एवं लोप होकर
भवसि - यह रूप सिद्ध हुआ।
भवामि
भू - 'वर्तमाने लट्' से लट् प्रत्यय
भू + लट् - लट् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + ल् - 'कर्तरि शप्' से शप का विकरण
भू + शप् + ल् - शप्' के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + अ + ल् - 'सार्वधातु' से भू के इगन्त अंग को गुण होकर
भो + अ + ल् - 'एचोऽयवायावः' से ओ को अव आदेश
भव् + अ + ल् - कर्ता के मध्यम पुरुष एकवचन की विवक्षा में मिप प्रत्यय
भव + मिप् - 'अतो दीर्घो यञि' से भव अदन्त अंग को दीर्घ
भवा + मिप् - मिप् के प् की इत्संज्ञा तथा लोप लकार
भवामि - यह रूप सिद्ध हुआ।
लिट् लकार
एक वचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | बभूव | बभूवतुः | बभूवुः |
मध्यम पुरुष | बभूविथ | बभूवथुः | बभूव |
उत्तम पुरुष | बभूव | बभूविव | बभूविम |
लिट् के स्थान पर परस्मैपद तिप् आदि नौ प्रत्ययों को क्रम से णल आदि नौ आदेश होते हैं।
तिप् आदि
एक वचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | तिप् | तस् | झि |
मध्यम पुरुष | सिप् | थस् | थ |
उत्तम पुरुष | मिप | यस | मस् |
णल् आदि
एक वचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | णल | अतुस् | उस् |
मध्यम पुरुष | थल् | अथुस् | अ |
उत्तम पुरुष | णाल् | व | म |
बभूव
बभूव - भू धातु लिटलकार प्रथम पुरुष एकवचन
- 'भूवादयोः धातवः से भू की धातु संज्ञा
- 'भू सत्तायाम्' से भू धातु, धातु सत्ता अर्थ में विद्यमान अकर्मक धातु है।
- ले कर्मणिच भावेचाकर्मकेभ्यः सूत्र से कर्ता अर्थ में लकार आया।
भू + लिट् - परोक्षे लिट् से अनद्यतन परोक्ष भूतकाल की विवक्षा में लिट् लकार आया।
भू + ल् - लिट् के इ की उपदेशोऽजनुनासिक इत् से इत्संज्ञा तथा ट् की हलन्त्यम् से इत्संज्ञा।
भू + तिप् - 'परस्मैपदानां णलतुसुस्थलथुसणत्वमाः' से तिप् को णल आदेश
भू + अ - णल् के लू की 'हलन्त्यम्' की इत्संज्ञा तथा ण् की 'चुहू' से इत्संज्ञा होकर "तत्यलोपः से लोप।
भू + वुक् + अ - 'भुवो वुग् लुङ् लिटो:' से लिट् परे होने पर वुक् का आगम और यह आगम आद्यन्तो टकितौ से भू का अन्त अवयव होगा।
भूव भूव + अ - लिटि धातोरनभ्यासस्य से लिट् परे होने पर भूव को दित्वपूर्वोभ्यासः से पूर्व भूद् की अभ्यासः संज्ञा
भू + भूव् + अ - हलादि शेषः से अभ्यास के एक हल को छोड़कर शेष सभी हलों का लोप।
भू + भुव् + अ - भवतेरः से लिट् परे होने पर अभ्यास के स्वर को आकार आदेश
ब भूव् + अ - अभ्यासे चर्च से अभ्यास भ को ब होता है।
बभूव - यह रूप सिद्ध हुआ।
बभूविथ
भू - परोक्षे लिट् से लिट्
भू + लिट् - लिट् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + ल् - कर्त्ता के मध्यम पुरुष एकवचन की विवक्षा में सिप प्रत्यय शिक्ष
भू + सिप् - 'परस्मैपदानां सूत्र से सिप को थल आदेश।
भू + थल् - 'भुवो वुग् लुङ् लिटो:' से भु को बुक आगम
भू + वुक् + थल् - वुक् के उक् की इत्संज्ञा एवं लोप होकर
भू + थल् - 'लिट् धातो से भूव को द्वित्व
भूव् + भव् + थल - 'हलादिः शेषः' से प्रथम अभ्यास संज्ञक भूव का भू शेष भू भूव् + थल 'ह्रस्वः' से भू के ऊ को उ होकर
भु भूव् + थल् - 'भवतेर:' से अभ्यास संज्ञक भु कोभ बभूव् + थल् - 'अभ्यासे चर्च' से 'म' को ब हुआ।
ब भूव् + थल् - थल के लट् की इत्संज्ञा एवं लोप होकर बभूव + थ आर्धधातुकस्पेड़ वलादेः' से इट् का आगम बभूव + इट् + थ - इट् के ट् की इत्संज्ञा तथा लोप होकर बभूविथ - यह रूप सिद्ध हुआ।
लुट् लकार
एक वचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | भविता | भवितारौ | भवितारः |
मध्यम पुरुष | भवितासि | भवितास्थः | भवितास्थ |
उत्तम पुरुष | भवितास्मि | भवितास्व | भवितास्य |
भवितारौ
भू - भू सत्तायाम्।
- भूवादयो धातवः से 'भू' की धातु संज्ञा धातोः से धातु के अधिकार में करके लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः सूत्र से आकर्मक 'भू' धातु से कर्त्ता के अर्थ में
भू + लुट् - 'अनद्यतने लुट्' से 'लुट' आया हलन्त्यम् से 'ट् की इत्संज्ञा 'उपदेश अजनुनासिक इत् से 'इ' की इत्संज्ञा आये।
भू + ल् - तस्यलोपः से दोनों का लोप
- तिप्तझि - सिप्थस्थ- भिप्वस्भस ताऽऽतांक्ष - थासाथाध्वम् इड्व हिमहिड् से १८ प्रत्यय
- लः परस्मैपदम् से १८ प्रत्यय की परस्मैपद संज्ञा तडानावात्मनेपदम् सूत्र से ६ प्रत्यय की आत्मनेपद संज्ञा शेषात्कर्तरि परस्मैपदम् से शेष परस्मैपद संज्ञा तिस्त्रीणि त्रीणि-प्रथम मध्यमोत्तमाः से प्रथम, मध्यम एवं उत्तम संज्ञा।
- शेषे प्रथमः से प्रथम पुरुष संज्ञा तान्येकवचनद्विवचन बहुवचनान्येकशः से द्विवचन की विवक्षा में।
भू + तस् - थासाथाध्वम् इड्वहिमहिङ् से 'तस्' प्रत्यय तिशित्सार्वधातुकम् से 'तस्' की सार्वधातुक संज्ञा कर्तरिशिप से सार्वधातुक तस् परे होने से ‘शप्'।
भू तासि तस् - 'स्य तासी लृ लुटोः से तासि का आगम उपदेशेऽजनुनासिक इत् से इ की इत्संज्ञा
भू तास् तस् - तस्यलोपः से लोप
भू तास् तस् - आर्धधातुकम् शेष तास की आर्धधातुक संज्ञा आर्धधातुकस्येङवनादेः से आदि में वलादि
भू इट् तास् तस् - (ट) होने से इट् का आगम।
- हलन्त्यम् से 'ट्' की इत्संज्ञा।
भू इ तास् तस् - तस्यलोपः से लोप
- सार्वधातुकार्थधातुकयोः से आर्धधातुक 'इ' प्रत्यय परे होने से 'भू' इक।
भो इ तास् तस् - गुण ओ होकर
- एचोऽयवायावः 'सूत्र से एच् के पश्चात् (अच्) इ
भ् अव् इ तास् - तस होने से 'ओ' को अव् आदेश।
भू अव् इतास् रौ - लुटः प्रथमस्य डारौ रसः से 'तस्' को 'रौ'।
भू अ व इ तारौ - रिच तास् के 'स्' का लोप
- अज्झीनं वर्ण परेण संयोज्यम् से संयुक्त
भक्तिरौ - यह रूप सिद्ध होता है।
भवितारः
भू - भू सत्तायाम्।
भूवादयो धातवः से भू की धातु संज्ञा धातोः से धातु के अधिकार में करके लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः' सूत्र से अकमर्क 'भू' धातु से कर्ता के अर्थ में।
भू + लुट् - अनद्यतने लुट से लुट् आया।
- हलत्यम् से ट की इत्संज्ञा।
- उपदेशेऽजनुनासिइत् से 'इ' की इत्संज्ञा
भू - ल् - तस्यलोपः से लोप्
- तिप् तस् झि - सिप् थस् थ - मिप्वस्मस् - ताऽऽतांझ थासामाध्वयम् इड्वहिम हिङ् से १८ प्रत्यय आये
- लः परस्मैपदम् से १८ प्रत्यय की परस्मैपद संज्ञा तङानावात्मनेपदम् सूत्र से ६ प्रत्यय की आत्मनेपद संज्ञा।
- शेषात्कर्तरि परस्मैपदम् से शेष की परस्मैपद संज्ञा।
- तिस्त्रीणिः त्रीणि प्रथममध्ययोत्तमाः से प्रथम्, मध्यम एवं उत्तम संज्ञा
- शेष प्रथमः से प्रथम पुरुष संज्ञा
- तान्येकवचन द्विवचन बहुवचनान्येकशः से बहुवचन की विवक्षा में तिप्त्सझि सिप्तस्थ- मिप्वस्मस्-ताऽऽतांझ।
भू + झि - थासाथांह्वम् इड्वहि महिङ से सि प्रत्यय तिङ् शिरसार्वधातुकम् से 'झि' की सार्वधारण संज्ञा कर्तरिशिप से सार्वधातुक 'झि' परे होने से शिप् परन्तु
भू-तासि झि - स्यातासी लृलुटोः' से तासि का आगम उपदेशेऽजनुनासिक इत् से तासि के इ की इत्संज्ञा व तात्यलोपः सेलोप।
भविताराः - यह रूप सिद्ध होता है।
लृट् लकार
एक वचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | भविष्यति | भविष्यतः | भविष्यन्ति |
मध्यम पुरुष | भविष्यसि | भविष्यथः | भवियथ |
उत्तम पुरुष | भविष्यादि | भविष्यावः | भविष्यामः |
भविष्यति
भू - 'लृट् शे----षि च' से लृट् प्रत्यय
भू + लृट् - लृट् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + ल् - कर्ता के प्रथम पुरुष एकवचन की विवक्षा में तिप् प्रत्यय भू + तिप् स्यतासी लृलुटोः' से स्य का विकिरण
भू + स्य + तिप् - 'आर्धधातुकस्पेड़ वलादेः से इट् (इ) आगम
भू + इ स्य + तिप् - 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' सूत्र से भू के इगन्त अंग को गुणादेश
+ इ स्य + तिप् - 'एचोऽपयवायावः' से ओ को अव् आदेश
भव् + इ स्प + तिप् - तिप् के अनुबन्धों को हटाने पर।
भव् + इस्य + ति - 'आदेश प्रत्यययोः' से स् को ष
भविष्यति - यह रूप सिद्ध हुआ।
भविष्यन्ति
भू - लट् शेष च' से लृट् प्रत्यय
भू + लृट् - लृट् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + ल् - कर्ता के प्रथम पुरुष बहुवचन की विवक्षा में झि प्रत्यय भू + झि - 'स्यतासी लृलुटोः' से स्प का विकरण
भू + स्य +झि - 'आदेश प्रत्ययययोः' से स् को ष्
भविष्य + झि - 'झोऽन्तः' से झ को अन्त आदेश होकर
भविष्यन्ति - यह रूप सिद्ध हुआ।
लोट् लकार
एक वचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | भवतु | भवताम | भवन्तु |
मध्यम पुरुष | भव | भवतम् | भवत |
उत्तम पुरुष | भवानि | भवाव | भवाम् |
भवतु
भू - भूवादयोधातवः
- धातोः
- विधिनिमन्त्रणामंत्रणा धीष्ट सम् प्रश्नों प्राथनेषु लिंग लोट् च लोट् लकार।
- प्रत्यय
भू + लोट् - परश्च
उपदेशेऽजनुनासिक इत् - हलन्त्यम् तस्यलोपः।
भू + लृ - अदर्शनं लोपः
- लः कर्मणि च भावे चकर्मकेभ्यः - लस्य
- विप् तस् झि सिप् थम् थ मिप वस् मसृता-ताऽऽतांझ।
भू + झि - थासाधांध्वम् इड्वहिमहिङ से सि प्रत्यय 'तिङशित्सार्व धातुकम्' से 'झि' की सार्वधारण संज्ञा कर्तरिशिप से सार्वधातुक 'झि' परे होने से शप्
- विभक्तिश्चु - न विमम्तौ तुस्साः
- लः परस्म पदम्, - तंगानावात्मने पदम्
- शेषाकर्त्तरि परस्मैपदम् तिस्त्रीणि-प्रथममध्ययोत्तमाः
- तान्येक वचन द्विवचन बहुवचान्येकशः
- युन्मधुपपदे समानाधिकरण्ये स्यानिन्यापि मध्यम
- अस्मधुत्तमः - शेष प्रथम
भू + तिप् - द्वैकदोद्विचनौकवचनै - बहुखुबहुबवुचनम् - तिङ्शित् सार्वधातुकम्
भू शप् तिप् कर्त्तरि - शप्
- हलन्त्यम् - लशक्कतद्विते
भवनु - यह रूप सिद्ध हुआ।
भवताम्
भू - 'लोट् च' सूत्र से लोट् प्रत्यय
भू + लोट् - लोट् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + ल् - कर्ता के प्रथम पुरुष द्विवचन की विवक्षा में तम् प्रत्यय
भू + तस् - कर्तरि शिप से शप का विकरण
भू + शप् + तस् - 'शप् ' के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + अ + तस् - 'सार्वधातुकार्थधातुकयोः' से इगन्त अंग को गुण
भो + अ + तस् - 'एचोऽयवापावः' से ओ को अव आदेश
भव + तस् - तस्थस्थमियां तांतंतामः' से तम् को ताम् होकर
भवताम् - यह रूप सिद्ध हुआ है।
भव/भवतात्
भू - 'लोट् च' सूत्र से लोट् प्रत्यय
भू + लोट्- लोट् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + ल् - कर्त्ता के म.पु. एफ. की विवक्षा में सिप् प्रत्यय
भू + रिप् - 'कर्तारि शप्' से शप् का विकिरण
भू + शप् + सिप् - शप् तथा सिप् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + अ + सि - 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' से इगन्त अंग को गुण
भो + अ + सि - 'एचोऽयवायावः' से ओ का अव आदेश
भव + सि - सेर्हपिच से सि को हि आदेश होकर
भव + हि - 'अतो. हे:" से हि का लोप होकर
भव - यह रूप सिद्ध हुआ।
भवानि
भू - भूवादयो धातवः से भू की धातु संज्ञा
- भू सत्तायाम् से भू की सत्ता अर्थ में विद्यमान अकमर्कधातु है।
- लः कर्मणि च भावेः चांकर्मकेभ्यः से भू की लकार अर्थ में प्राप्ति।
भू + लोट् - लोट् च से लोट् लकार आया।
भू + ल् - लोट् के अनुबन्धों का लोप होकर ल शेष
भू + मिप् - तिप्तासझि.......से मिप्
भू + नि - मोर्निः से मि को नि आदेश
भू + आंट् + नि - आडुत्मस्य पिच्च के आट का आगम
भू + आ + नि - आट में आ शेष
भू + शप् + आ + नि - कर्तारि शप् से शप् का आगम
भू + अ + आ + नि - शप् का अ शेष
भो + अ + आ + नि - सार्वधातुकार्धधातुकयोः से गुण
भव् + अ + नि - एचोऽयवायावः से ओ को अव आदेश।
भव् + आ + नि - अकः सवर्णे दीर्घ से सवर्ण दीर्घ
भवानि - यह रूप सिद्ध हुआ।
भवाव
भू - 'लोट् च' सूत्र से लोट् प्रत्यय
भू + लोट् - लोट् के अनुबन्धों के हटाने पर
भू + ल् - कर्त्ता के उत्तम पुरुष द्विवचन की विवक्षा में वस् प्रत्यय
भू + वस् - 'कर्त्तरि शिप' से शप का विकरण
भू + शप् + वस् - शप् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + अ + वस् - 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' से इगन्त भू को गुण
भो + अ + वस् - 'एचोऽयवायावः' से ओ को अव आदेश
भव् + अ + वस् - 'नित्यं ङितः' से वस् मे स् का लोप
भ + व - 'आडुत्तमस्य पिच्च' से आट् का आगम
भव + आट + व - आर के ट् की इत्संज्ञा एवं लोप
भव + आ + व- 'अकः सवर्णे दीर्घः' से सवर्ण दीर्घ होकर
भवाव - यह रूप सिद्ध हुआ।
लङ् लकार
एक वचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | अभवत् | अभवताम् | अभवन |
मध्यम पुरुष | अभवः | अभवतम् | अभवत |
उत्तम पुरुष | अभवम् | अभवाव | अभवाम |
भू + तिप् - द्वयेकयोद्विवचनैकवचने
- बहुषु बहुवचनम् - तिङ् शित् सार्वधातुकम्
भू + शप् + तिप् - कर्तरि शप् - यस्मात् प्रत्यय विधिस्तदादि प्रत्ययेगम्
- अंगस्य - लुङ् लुङ् लृङ वडुदात्त
अट् भू शप् तिप् - आद्यन्तौ टकितौ
- हलन्त्यम् - लशम्वद्विते
- तस्य लोपः
अ भू अति - अदर्शनं लोपः
सार्वधातुकार्धधातुकयो.
- अदेडंगुणः
अ भो अति - स्थानेऽन्दरतम्
- परः सन्निकर्षः संहिता - संहितायाम् - एचोऽयवायावः
अ भव अति - यथा संख्यमनुदेशः सम्मानम्
अ भ व अ त्- इतश्च
अभवत् - अञ्जीनं परेष संयोजनम् - सुप्तिऽन्तम् पदम्।
अभवन्
भू - द्वयेकयोद्विवचनैकवचने।
भू + झि - बहुषु बहुवचनम्
भू अन्ति - झोऽन्तः
- तिङ् शित सार्वधाकम
भू शप् अन्तिम - कर्तरि शप्
- यस्मात् प्रत्ययविधिस्तदादि प्रत्ययेङ्गम् - अगंस्य
- लुङ् लङ लृङ वडुदान्तः
अट् भू शप् अन्ति - आद्यन्तौ टकितौ - हलन्त्यम्
- लशम्वतद्विते - तस्यलोपः
अ भू ऊ अन्ति - अदर्शनं लोपः
- सार्वधातुकार्धधातुकयोः - अदेगुणः
अ भो अ अन्ति - स्थानेऽन्तरतमः
- परः सन्निकर्षः संहिता - संहितायाम् - एचोऽयवायावः
अ भव अ अन्ति - यथा संख्यमनुदेशः समानाम्
अ भव अ अन्त - इतश्च
अ भव अ अव् - संयोगान्तस्यलोपः
- अञ्झीनं परेण संयोजनम् - सुप्तिऽन्तम् पदम्।
अभवन् - यह रूप सिद्ध हुआ।
अभवः
भू - 'अनद्यतने लङ्' से लङ् प्रत्यय
भू + लङ - लृङलङलङवुडुदात्त' से अट् (अ) का आगम
अभू + लुङ् - लङ् के अनुबन्धों को हटाने पर
अभू + ल् - कर्ता के मु. पु. एकवचन की विवक्षा में सिप प्रत्यय
अभू + सिप् - 'कर्तरि शप' से शप का विकरण
अभू + शप् + सिप् - शप् तथा शिप के अनुबन्धों को हटाने पर
अभू + अ + सि - सार्वधातुकार्थधातुकयोः' से इगन्त भू को गुण
अभो + अ + सि - 'एचोऽयवायावः' से ओ को अब आदेश
अभव + सि - 'इतश्च' से इ का लोप
अभव + स् - ससजुषो रुः से स् को रु (र)
अभवर् - 'खरवसानयवि से द को विसर्ग होकर
अभवः - यह रूप सिद्ध हुआ
विधिलिङ् लकार
प्रथम पुरुष | भवेत् | भवेताम् | भवेषुः |
मध्यम पुरुष | भवे | भवेतम् | भवेत |
उत्तम पुरुष | भवेयम | भवेव | भवेम |
भवेत्
भू - 'विधि निमन्त्रणाधीष्टसंप्रश्न प्रार्थनेषु' सूत्र से लिङ् प्रत्यय
भू + लिङ् - लिङ् के अनुबन्धों को हटाने पर
भू + ल् - कर्ता के प्रथम पुरुष एकवचन की विवक्षा में तिप् प्रत्यय
भू + तिप् - 'कर्तरिशप्' से शप का विकरण
भू + शप् + तिप् - शप्' तथा 'तिप्' के अनुबन्धों को हटाने पर
भू+ अ + ति - 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः से इंगत भू को गुण
भो + अ + ति - 'एचोऽयवायावः' सूत्र से ओ को अव् आंदेश
भव् + अ + ति - 'इतश्च' से ङित लकारों के ति के इ का लोप
भव + त् - 'यासुट् परस्मैपदेषूदात्तौ ङिच्च' से यासुर, (यास्) का आगम
भव + यास् + त् - 'अतो येयः' से अदत्त 'भव' से परे यास् को इय् आदेश
भव + इप् + त् - 'लोपो व्योर्वलि' से इप् के य् का लोप
भव + इत् - 'आदगुणः से गुण सन्धि करनें पर
भवेत् - यह रूप सिद्ध हुआ।
भवेयुः
भू + झि - बहुषु बहुवचनम्
भू + उस् - झेर्जुस • तिङ् शित् सार्वधातुकम्
भू शप् उस् - कर्तरि शप्
- हलन्त्यम् - तशम्बतद्धिते - तस्यलोपः
भू उस् - अदर्शनं लोपः
भू या स् उस् - यासुट् परस्मैपदेषूदान्तौ डिच्च
भू पास् उस् - आद्यन्तौ टकितौ
भू इय उस - अतो येयः
- अस्मात् प्रत्यय विधिस्तदादि प्रत्ययेऽङ्गम् - अंगस्य :- सार्वधातुकार्धधातुकयोः - अदेङ्गुणः
भो इय उस् - स्थानेऽन्तरतमः
- परः सन्निकर्षः संहिता - संहितायाम् - एचोऽयवायावः
भव इय उस् - यथासंख्यामनुदेशः समानाम्
भवेय उस् - आदगुणः
भवे यु स् - अञझीन परेण संयोजनम्
- सुप्तिङन्तम् पश्य - पदस्य
भवेयुरु - ससजुषोरुः
- उपदेशेऽजनुनासिक इत् - तस्यलोपः
भवेपुर - अदर्शनं लोपः - विरामोऽवयानम्
भवेयुः - खसानयविसर्जनीयः
भवेयः - यह रूप सिद्ध हुआ।
आशीर्लिङ् लकार
प्रथम पुरुष | भूयात् | भूयास्ताम् | भूयासुः |
मध्यम पुरुष | भूयाः | भूयास्तम् | भूयास्त |
उत्तम पुरुष | भूयासम् | भूयास्व | भूयास्म् |
भूयात्
भू - भूवादपोधातवः - धातोः
आशिषि लिङलौटो से लिङ प्रत्यय
भू + लिङ् - परश्च
- उपदेशऽजनुनासिइत्। - हलन्त्यम् - तस्यलोपः - अदर्शनं लोपः
- लः कर्मणि घ भावे च अकर्मकेभ्यः - तस्य
- तिप् तस् झि - सिप् यस् थस्- मिव् वस् मस् - ताऽऽतांझ-थाशाथांध्वम्
इङ्वहिमहिङ।
- विभिक्तश्च - लः परस्मैपदम् - लङ्नावात्मने पदम्
- शेषान्त कर्तरि परस्मैपदम्
- तिस्त्रीणि त्रीणि प्रथम मध्यमों तमा तान्वेक वचन द्विवचन बहुवचनान्येकशः युष्मधुपपदे
समानाधिकरण्ये स्थानिन्द्यपि मध्यमः
- अस्यमद्युत्तम्ः
- शेषे प्रथमः
भू तिप् - द्वयेकयोद्विवचनैकवचने
आशिषि लिङ्लोटौ - आशि अर्थ में लिङ् लकार आर्ध धातु हो
फलतः कर्तवाच्य में शप का प्रयोग नहीं होगा।
भूयात् - यह रूप सिद्ध हुआ।
लुङ् लकार
प्रथम पुरुष | अभूत् | अभूताम् | अभूवन् |
मध्यम पुरुष | अभूः | अभूतम् | अभूत्, |
उत्तम पुरुष | अभूवम् | अभूव | अभूम |
अभूत्
भू - लुङ् सूत्र से लुङ् प्रत्यय
भू + लुङ् - 'लुङ्लङ्लृङ्क्ष्वडुदात्तः' से भू को अट् (अ) का आगय
अभू + लुङ् - लुङ् के अनुबन्धों को हटाने पर
अभू + ल् - कर्ता के प्रथम पुरुष एकवचन की विवक्षा में तिप् प्रत्यय
अभू + तिप् - 'च्लि लुङि' से कर्ता के अर्थ में लगने वाले तिबादि प्रत्ययों के परे रहते धातु
चिल विकरण
अभू + च्लि + तिप् - 'च्लेः सिच्' से च्लि को सिच् आदेश
अभू + सिच् + तिप् - गातिस्थाधुपाभूभ्यः सिचः परस्मैपदेषु' से भू से परे सिच का लोप
अभू + तिप् - 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' से इगन्त भू को गुण प्राप्त, किन्तु 'भूसुवोस्तिङि' सूत्र से
गुण का निषेध।
अभू + तिप् - तिप् के प् की इत्संज्ञा तथा 'इतश्च' सूत्र से ति के इ का लोप होकर
अभूत् - यह रूप सिद्ध हुआ।
अभूवन्
भू - झि - बहुषु बहुवचनम्
भू अन्ति - झोऽन्तः
भू च्लि अन्ति - च्लि लुङ्ि
भू सिच् अन्ति - च्ले सिच्
- यस्मात् प्रत्यय विधिस्तदादि प्रत्ययपेङ्गम् - अगस्य
अट् भू सिच् अन्ति - लुङ्लङ्लृङक्ष्वडुदात्त;
- आद्यन्तौ टकितौ
अट भू अन्ति- गतिस्थाद्युपाभूभ्यः सिच्ः परस्मैपदेषु
- हलन्त्यम् - तस्यलोपः
अ भू आन्ति - अदर्शनं लोपः
अ भू वुक् अन्ति - भुवो वुक लुङ् लियेः,
- उपदेशडजनुनासिक इत् - हलन्त्यम् - तस्यलोपः
अ भू व अन्ति - अदर्शनं लोपः - इतश्च
अभू व न - अञ्झीन परेण संयोजनम् .
सुप्तिऽन्तम् पदम्।
अभूवन् - यह रूप सिद्ध हुआ।
लृङ लकार
प्रथम पुरुष | अभिष्यत् | अभिष्यताम् | अभविष्यन् |
मध्यम पुरुष | अभविष्यः | अभविष्यतम् | अभविष्यत् |
उत्तम पुरुष | अभविष्यम् | अभविष्याव | अभविष्याम |
अभविष्यत्
भू - लिङ् निमित्ते लृङ क्रियातिपत्तौ' से लृङ् प्रत्यय
भू + लृङ् - 'लङ्लङ्लृक्ष्वडुदात्तः' सूत्र से भू को (अ) का आगम
अभू + ल् - कर्ता के प्रथम पुरुष एकवचन को विवक्षा में तिप्
अभू + तिप् - स्यतासी लृलुटोः' से स्य का विकरण
अभू + स्य + तिप् - आर्धधातुकरूपेङ वलादेः सूत्र से इट् (द) का आगम
अभू + इस्य + तिप् - सार्वधातुकार्धधातुकयोः' सूत्र से इगन्त अंग भू को गुण
अभो + इस्य + तिप् - 'एचोऽयवायावः' सूत्र से ओ को अव आदेश
अभूव + इस्य + तिप् - 'आदेश प्रत्ययोः' से स को ष
अभविष्यत् - यह रूप सिद्ध हुआ।
अभविष्यतम्
भू - लिङ् निमित्ते लृङ क्रियातिपत्तौ से लृङ् प्रत्यय
भू + लृङ् - 'लङ्लङ्लृक्ष्वडुदात्तः' सूत्र से भू को (अ) का आगम
अभू + तिप् - 'स्यातासी लुटोः
अभू + स्य + लिप् - अर्धधातुकरुपेङ वलादे इट् आगम
अभू + इस्य + तिप् - अभो + इस्य + तिप्
अभवि + इस्य + तिप् -
अभविष्यताम्
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- प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
- १. भू धातु
- २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
- ३. गम् (जाना) परस्मैपद
- ४. कृ
- (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
- प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
- प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
- कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
- कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
- करणः कारकः तृतीया विभक्ति
- सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
- अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
- सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
- अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
- प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
- प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
- प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
- प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
- प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
- प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
- प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
- प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।